शारीर के वेग को न रोको
अधारणीय वेग
आयुर्वेद में दो तरह के वेगों का विस्तृत विवरण मिलता है।
धारणीय और अधारणीय।
धारणीय वेग में वे चीजें आती हैं, जिन्हें रोकने से लाभ होता है। क्रोध, काम, लोभ आदि को इस कैटेगिरी में रखा जा सकता है।
अधारणीय वेग से मतलब ऐसे वर्गो से है, जिन्हें रोकने से शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है। इनमें वायु, मल, मूत्र, छींक, प्यास, भूख, निद्रा, खांसी, जम्भाई, आंसू, वमन और शुक्र आदि आते हैं।
अधारणीय वेग को रोकने से शरीर में वायु का प्रकोप होता है, जिससे कई तरह के रोग पैदा हो जाते हैं। किस वेग को रोकने से किस तरह की तकलीफ होती है। अगर यह जान लिया जाए, तो आप बहुत सी बीमारियों से बच सकते हैं।
वायु : वायु को रोकने से गुल्म, उदावर्त, केटि, शूल, कृमि, मूत्र और मल का अवरोध हो सकता है। इस स्थिति में नजर कमजोर हो जाती है, और हृदय रोग पैदा हो जाते हैं।
मल : मल का वेग रोकने से जोड़ो में दर्द, पेट में पीड़ा और धमनियों मं अवरोध पैदा हो जाती है।
मूत्र: जो लोग मूत्र का वेग रोक लेते हैं, उन्हें मूत्र आने में कठिनाई होने लगती है। नाभि के नीचे दर्द, और मूत्राश्य में स्टोन जैसी समस्यायें भी पैदा हो जाती हैं।
छींक: छींक को रोकने से सिर में दर्द, आंखों में कमजोरी, गर्दन जकड़ जाना और अनिद्रा जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
प्यास: प्यास लगने पर पानी न पीने से मुंह सूखना, अंगो में शिथिलता, बहरापन, बेहोशी और चक्कर आने लगते हैं।
भूख : भूख लगने पर भोजन न करने से शरीर में टूटन, अरूचि, ग्लानि, शूल और अमाशय में घाव हो जाते हैं।
श्वास: व्यायाम करने के बाद या सीढिय़ा चढऩे के बाद बढ़ी हुई सांस के वेग को जबरदस्ती रोकने से हृदय रोग या मूच्र्छा हो सकती है।
आंसू : किसी विपत्ति या भावुकता के क्षणों में अगर आंसू आ रहे हैं तो उन्हें रोकना नहीं चाहिए। आंख में आये आंसू रोकने से जुकाम, माइग्रेन, नजर कमजोर होना या याददाश्त में कमी आती है।